उड़ता है आसमां में एक पंछी
कुछ गुज़रे पलों की याद दिलाता हुआ
कभी ऊँची उड़ान भरी
तो कभी थम सा गया ।
बेफिकर हो है वोह उड़ रहा
कि मैं भी था रहा अपनी चल रहा
फिर कुछ साथी संग उसके उड़ने लगे
कि मेरे यारों का समां था बंध रहा ।
अभी एक हवा का झोंका लगा उसको
और नए कदम मेरी ज़िन्दगी में आए
कुछ रुका, पंख हिलाए, रुख उसका बदल सा गया
मेरी हमसफ़र जो बन गयी वोह, रास्ता एक बन सा गया ।
अब ऊपर देखो तो एक काफिला है उड़ रहा
हम दो मस्तानो के बचपन नज़र आने लगे
कुछ मदमस्त हैं वोह सब उड़ रहे
जो लाये इस दुनिया में, मुझ पर हाथ वोह फैराने लगे ।
यह उड़ान कुछ ऊँची है
पर वोह उड़ता है जा रहा
जैसे आसमान की कोई सीमा नहीं
पर मुझको भी तो है जाना वहाँ ।
वोह देख कर मुझको है मुसकुरा रहा
जैसे जैसे आकाश में हुआ वोह ओझल
उड़ान उसकी अभी है हुई शुरू
कि मुझको वोह साथ है लेता जा रहा ।।
@kanchan
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