अभी आँखे खोली हैं मैंने
लम्बे दौर के बाद हूँ जागा
ओझल सा है नज़ारा सामने
एक नए समय में अभी नहीं तकाज़ा
कल तक था मैं चल रहा अकेले
अब कई मुसाफिर हैं साथ मेरे
कल तक मैंने थी एक राह बनाई
अब कई राहें हैं सामने मेरे
मैं उठ रहा हूँ इस दौर से
दस्तक देता नए दरवाज़ों पर
एक हाथ से थामा है आज को
और निगाहें हैं आगाज़ों पर
कुछ दीवारें अभी बनी नहीं
इमारतें भी नयी पुरानी हैं
दूर तलक देख रहा हूँ अब
कल की झलक अभी रूहानी है
आँख अब सो सकती नहीं
मंज़र नज़र आने सा लगा है
हाथ खोल समेट रहा हूँ यह क्षण
यह नया दौर मुझे अपनाने लगा है