मेरा अकेलापन आज फिर मुझसे था मिलने आया
सामने मेरे बैठ गया, झाँक कर मुझमे कुछ देखा उसने
कुछ रफ़्तार से चल रहा था मैं, मुझको था वोह रोकने आया
कुछ देर तलक बैठे हम दोनों, गुफ्तगू का दौर शुरू किया उसने
बहुत करीब आकर भी वोह वाकिफ सा नहीं नज़र आया |
क्यों मैं चला जा रहा हूँ ऐसे, कोई एहसास क्यों होता नहीं
मैं क्या खो रहा हूँ खुद से, ऐसा कुछ उसने मुझे समझाया
लौट चलो उस दौर में, जहाँ सिर्फ आगाज़ है
लफ़्ज़ों का दायरा था मेरे दिमाग में, फिर भी मैंने खुद तो चलता पाया |
ज़हन में सवाल हैं, ख्याल हैं और हैं बहुत सी रंगीनिया
पर हर रंग का रंग बेरंग सा क्यों हैं अब तक पाया
वो सामने बैठा था इस अंदाज़ में, कि जीवन था झलक रहा
किसको देख रही है नज़र, क्या वोह है मुझमे समाया |
वक़्त की रफ़्तार थी बढ़ रही, उस दौड़ में था मैं शामिल
किस मुकाम पर है रुकना, ऐसा अब तक नहीं है समझ आया
मुझको मुझसे परिचित करा कर, वोह आगे सा बढ़ने लगा
ओझल सा वोह होने लगा, पर अब मैंने था फिर से खुद को पाया||
@saxenaas @kanchan
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