दर्द हुआ आवाज़ों में
लहू निकला बाज़ारों में
शोर हुआ शमशानों में
एक और नाम गया किताबों में ।
एहसास हुआ इंसानों को
पर काटा भी इंसानों ने
बैर लगा इतिहासों को
पर लाल रंग ही था दरारों में ।
एक गिरा तो और उठ आये
कोई कमी नहीं हथियारों में
सूखी आँखें अब भी हैं आस लगाये
पर कोई शिकवा नही इन कतारों में ।