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Archive for the ‘Society’ Category

एहसास (2017)

अभी आँखे खोली हैं मैंने

लम्बे दौर के बाद हूँ जागा

ओझल सा है नज़ारा सामने

एक नए समय में अभी नहीं तकाज़ा

 

कल तक था मैं चल रहा अकेले

अब कई मुसाफिर हैं साथ मेरे

कल तक मैंने थी एक राह बनाई

अब कई राहें हैं सामने मेरे

 

मैं उठ रहा हूँ इस दौर से

दस्तक देता नए दरवाज़ों पर

एक हाथ से थामा है आज को

और निगाहें हैं आगाज़ों पर

 

कुछ दीवारें अभी बनी नहीं

इमारतें भी नयी पुरानी हैं

दूर तलक देख रहा हूँ अब

कल की झलक अभी रूहानी है

 

आँख अब सो सकती नहीं

मंज़र नज़र आने सा लगा है

हाथ खोल समेट रहा हूँ यह क्षण

यह नया दौर मुझे अपनाने लगा है

 

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दर्द हुआ आवाज़ों में

लहू निकला बाज़ारों में

शोर हुआ शमशानों में

एक और नाम गया किताबों में ।

 

एहसास हुआ इंसानों को

पर काटा भी इंसानों ने

बैर लगा इतिहासों को

पर लाल रंग ही था दरारों में ।

 

एक गिरा तो और उठ आये

कोई कमी नहीं हथियारों में

सूखी आँखें अब भी हैं आस लगाये

पर कोई शिकवा नही इन कतारों में ।

 

थामे जज़बाद कुछ जवानों ने

आवाज़ लगाई दीवानों ने

मैंने लफ्ज़ उतारे हैं किताबों में

तुम इंसानियत का जज़बा उतार दो इंसानों में ॥

 kanchan

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bird_in_the_sky

उड़ता है आसमां में एक पंछी

कुछ गुज़रे पलों की याद दिलाता हुआ

कभी ऊँची उड़ान भरी

तो कभी थम सा गया ।

 

बेफिकर हो है वोह उड़ रहा

कि मैं भी था रहा अपनी चल रहा

फिर कुछ साथी संग उसके उड़ने लगे

कि मेरे यारों का समां था बंध रहा ।

 

अभी एक हवा का झोंका लगा उसको

और नए कदम मेरी ज़िन्दगी में आए

कुछ रुका, पंख हिलाए, रुख उसका बदल सा गया

मेरी हमसफ़र जो बन गयी वोह, रास्ता एक बन सा गया ।

 

अब ऊपर देखो तो एक काफिला है उड़ रहा

हम दो मस्तानो के बचपन नज़र आने लगे

कुछ मदमस्त हैं वोह सब उड़ रहे

जो लाये इस दुनिया में, मुझ पर हाथ वोह फैराने लगे ।

 

यह उड़ान कुछ ऊँची है

पर वोह उड़ता है जा रहा

जैसे आसमान की कोई सीमा नहीं

पर मुझको भी तो है जाना वहाँ ।

 

वोह देख कर मुझको है मुसकुरा रहा

जैसे जैसे आकाश में हुआ वोह ओझल

उड़ान उसकी अभी है हुई शुरू

कि मुझको वोह साथ है लेता जा रहा ।।

 

@kanchan

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