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Archive for October 25th, 2015

20150912 Seattle Falls

 

बहते झरने की बौछार ने कहा

छोटी हूँ मैं पर नवजीवन हूँ लाती ।

कुछ अंश देती हूँ संसार को

और धरती पहुंच धारा हूँ बन जाती ॥

 

जीवन प्रदान दायित्व है मेरा

चंद बूंदों से सही , फिर भी हूँ बाँट रही ।

आँखें मूँद धरती की गोद में हूँ समाती

कण कण से अपने सरलता को हूँ छांट रही ॥

 

मनुष्य , फिर तुम क्यों हो थमे हुए

सक्षम हो , श्रेष्ठ जीवन है प्राप्त किया ।

अहम और स्वयं में हो क्यों फसे हुए

जब सृष्ठि ने है तुमको प्रताप दिया ॥

 

तुम भी हो समय की एक धारा

जीवन आया है , फिर लौट जायेगा ।

क्षण क्षण से अपने करो कुछ उद्धार

आने वाला हर जीवन फल जिसका पायेगा ॥

 

मैं तो धारा हूँ , नदिया बन दायित्व निभायूँगी

तुमने तो एक ही जीवन पाया है ।

आँखें खोलो , माया छोड़ो , नवजीवन करो प्रदान

मनुष्य , इस कारणवष तू यहाँ आया है ॥

 

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