Posted in Life, Poetry, social, Society, tagged Hindi, hindi-poem, noble, Poetry, society, upliftment, values on February 9, 2014|
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दर्द हुआ आवाज़ों में
लहू निकला बाज़ारों में
शोर हुआ शमशानों में
एक और नाम गया किताबों में ।
एहसास हुआ इंसानों को
पर काटा भी इंसानों ने
बैर लगा इतिहासों को
पर लाल रंग ही था दरारों में ।
एक गिरा तो और उठ आये
कोई कमी नहीं हथियारों में
सूखी आँखें अब भी हैं आस लगाये
पर कोई शिकवा नही इन कतारों में ।
थामे जज़बाद कुछ जवानों ने
आवाज़ लगाई दीवानों ने
मैंने लफ्ज़ उतारे हैं किताबों में
तुम इंसानियत का जज़बा उतार दो इंसानों में ॥

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Posted in Life, Poetry, social, Society, tagged art, creativity, family, Hindi, hindi-poem, India, Poetry, values on December 8, 2013|
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उड़ता है आसमां में एक पंछी
कुछ गुज़रे पलों की याद दिलाता हुआ
कभी ऊँची उड़ान भरी
तो कभी थम सा गया ।
बेफिकर हो है वोह उड़ रहा
कि मैं भी था रहा अपनी चल रहा
फिर कुछ साथी संग उसके उड़ने लगे
कि मेरे यारों का समां था बंध रहा ।
अभी एक हवा का झोंका लगा उसको
और नए कदम मेरी ज़िन्दगी में आए
कुछ रुका, पंख हिलाए, रुख उसका बदल सा गया
मेरी हमसफ़र जो बन गयी वोह, रास्ता एक बन सा गया ।
अब ऊपर देखो तो एक काफिला है उड़ रहा
हम दो मस्तानो के बचपन नज़र आने लगे
कुछ मदमस्त हैं वोह सब उड़ रहे
जो लाये इस दुनिया में, मुझ पर हाथ वोह फैराने लगे ।
यह उड़ान कुछ ऊँची है
पर वोह उड़ता है जा रहा
जैसे आसमान की कोई सीमा नहीं
पर मुझको भी तो है जाना वहाँ ।
वोह देख कर मुझको है मुसकुरा रहा
जैसे जैसे आकाश में हुआ वोह ओझल
उड़ान उसकी अभी है हुई शुरू
कि मुझको वोह साथ है लेता जा रहा ।।
@kanchan
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Posted in India, Life, Poetry, Public Service, social, Society, Uncategorized, tagged change india, Hindi, honor the women, India, Poetry, rise of women, society, women atrocities, women emancipation, women empowerment on October 27, 2013|
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dedicated to all the women in India who are subject to societal, cultural and religious atrocities.
एक नर की नारी हूँ मैं
नरों ने अस्तितिव बनाया यह
युगों युगों से अबला हैं मुझको कहते
दबे दबे से मेरे अरमां मुझमे है रहते |
शीश झुका सबको संभाला
उनके रंगों में खुद को ढाला
कलम किताबों में देवी बनाया
पर मेरे जीवन में वोह पल ना आया |
कुछ युगों में उठी , फिर भुला दिया
मेरी कहानी को इतिहास में दबा दिया
और दहलीज़ जब लांघ कर आई
एक किरण थी हाथों में पर खुद को अकेला पाई |
आज जब आईने में देखा खुद को
तेज़ प्रताप नज़र आया मुझको
मैं हूँ शक्तिशाली
नही मैं अब नर की नारी |
कोई दहलीज़ नहीं , यह जग है मेरा
तुमसे मिला वक़्त , अब है मेरा
जाग्रित हूँ , साहस है , नए युग का है एहसास
अब मैं मैं हूँ , यह है मेरी आवाज़ ||

Top right picture courtsey: http://visualmantra.wordpress.com
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